शिक्षा ----पिछड़ा अहीरवाल, पिछड़ गए अहीर

अहीरवाल, यादवों की रियासत का वह गौरवशाली नाम जिसके वीरों ने सन 1857 के विद्रोह के दौरान अपने राजा राव तुला राम यदुवंशी के नेतृत्व में अंग्रेजों की ईंट से ईंट बजा दी। आज़ादी के बाद यह रियासत पंजाब प्रांत का हिस्सा बनी और उसके बाद सन 1966 में हरियाणा प्रदेश का हिस्सा बनी। हरियाणा प्रदेश के बनने में सर्वाधिक योगदान तत्कालीन सांसद और अहीरवाल रियासत के वारिस राव वीरन्द्र सिंह यादव का रहा व राव साहब हरियाणा के दूसरे मुख्यमंत्री भी रहे। इसके बाद हरियाणा में कोई भी यदुवंशी आज तक मुख्यमंत्री नहीं रहा। इसका नतीजा यह रहा की गत करीब 40 वर्षों में अहीरवाल बुरी तरह से पिछड़ गया। हरियाणा का एक जाट बहुल राज्य होना मुख्य तौर पर अहीरवाल के लोगों के लिए घातक सिद्ध हुआ है।
आज अहीरवाल में हरियाणा के तीन जिले समाहित है, ये जिले हैं गुडगाँव, रेवाडी और महेन्द्रगढ़। हरियाणा बनने से पहले रेवाड़ी के अहीर कॉलेज का नाम उत्तर भारत के उत्कृष्ट शिक्षण संस्थानों में गिना जाता था। हरियाणा के गठन के बाद भी काफी अरसे तक यह दक्षिण हरियाणा में शिक्षा का केंद्र बना रहा। परन्तु अगर हम हाल के पच्चीस साल की सरकारों की कार गुजारियों की तरफ एक नज़र डालें तो पायेंगे की एक सोची समझी रणनीति के तहत गैर जाट हरियाणा जिसमे मुख्यत: अहीरवाल का नाम शुमार है को शैक्षिक रूप से पिछड़ा बनाने की कोशिश की गयी है व हालिया सरकारें इसमें काफी हद तक सफल भी हो चुकी हैं। इतिहास कहता है कि आधुनिक काल में विकास का केवल एक ही मापदंड है और वह है शिक्षा। एक शिक्षाविद होने के नाते जब मैंने हरियाणा की शैक्षिक भेदभाव की नीति का अध्ययन किया तो एक भयावह सच से सामना हुआ। हरियाणा राज्य के गठन के पश्चात बहुत से राजकीय विश्वविद्यालय खोले गए जिनके विवरण इस प्रकार हैं।

महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय - रोहतक 

लाला लाजपत राय विश्वविद्यालय - हिसार 

दीन बंधू छोटू राम विश्वविद्यालय - सोनीपत 

भगत फूल सिंह विश्वविद्यालय - सोनीपत 

चौधरी देवी लाल विश्वविद्यालय - सिरसा 

चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय - हिसार 

पंडित भगवत दयाल मेडिकल विश्वविद्यालय - रोहतक 

वाई एम् सी ए विश्वविद्यालय - फरीदाबाद 

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय - कुरुक्षेत्र ( हरियाणा गठन से पूर्व स्थापित 1956)

गुरु जम्भेश्वर विश्वविद्यालय - हिसार 

इसके अलावा सबसे अधिक चिंता का विषय यह है की न केवल विश्वविद्यालयी शिक्षा ( कला, कॉमर्स व विज्ञान) में पूर्ण भेद भाव हुआ है अपितु तकनीकी और चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में भी भेदभाव चरम पराकाष्ठा पर है। पिछले 5 साल में केंद्र सरकार की ओर से हरियाणा को ३ बहुमूल्य राष्ट्रीय संस्थान दिए गए। अब ज़रा उनके स्थापन क्षेत्रों की तरफ भी एक नज़र डालें:-

भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM Rohtak) - रोहतक 

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) - झज्जर 

भारतीय तकनीकी संस्थान दिल्ली विस्तार (IIT Delhi Extn) - सोनीपत 

इसके अलावा निजी विश्वविद्यालयों को भी मुख्यत: इन्ही क्षेत्रों में केन्द्रित किया गया। अगर एक सरसरी निगाह इस सब पर डालेंगे तो पायेंगे की मुख्यत: रोहतक, सोनीपत , झज्जर और हिसार जिलों में ही शिक्षा के नाम पर निवेश हुआ है। अन्य क्षेत्रों जैसे फरीदाबाद, कुरुक्षेत्र को भी २ विश्वविद्यालय दिए गए है। इस सब में अगर किसी क्षेत्र विशेष की जान बूझकर अनदेखी की गयी है तो वह है अहीरवाल यानी गुडगाँव, रेवाड़ी और महेन्द्रगढ। आज गुडगाँव एक विश्वस्तरीय शहर है और यह भी सर्वविदित है कि प्रदेश सरकार की आमदनी का एक बहुत बड़ा हिस्सा अहीरवाल ( गुडगाँव, मानेसर, बावल, धरुहेडा ) से आता है. इसके बावजूद भी शिक्षा के क्षेत्र में अहीरवाल का स्थान अत्यंत दयनीय है। 
अगर बात इन क्षेत्रों में जाकर शिक्षा प्राप्त करने वाले अहीरवाल के विद्यार्थीयों कि की जाए तो स्तिथि और भी चिंताजनक हो जाती है। मैंने खुद रोहतक से शिक्षा ग्रहण की है और समय समय पर छोटे स्तर पर व एक बार विश्वविद्यालयी स्तर पर मुझे जाट वाद से रूबरू होना पडा है। यद्द्यपी जातिवाद बहुत से राज्यों का एक प्रमुख अंग है परन्तु अगर जातिवाद की पराकाष्ठ देखनी हो तो हरियाणा में अहीरवाल के साथ हो रहे भेदभाव से यह आसानी से देखा जा सकता है। बाकी गैर- जाटों को इस भेदभाव का सामना काफी कम करना पड़ता है क्योंकि वे राज्य की राजनीति में पहले से ही हाशिये पर है व कभी जाटों की किसी भी कारगुजारी का डटकर विरोध नहीं करते। 
अब अगर हम इस भेदभाव के कारणों पर एक नज़र डालें तो यह सब और भी साफ़ हो जायेगा। इस भेदभाव का सबसे बड़ा कारण यह है कि हरियाणा प्रांत में एक यादव ही हैं जो जाटों से संख्या बल छोड़कर हर मामले में बढ़कर हैं । इसका अंदाजा गुडगाँव और रेवाडी के अंतर्गत अहीरों के गावों को देखकर लगाया जा सकता है। अगर यादव शिक्षा के क्षेत्र में आगे निकल जायेंगे तो इस क्षेत्र में जाटों के वर्चस्व को ख़तरा निश्चित है। दूसरा मुख्य कारण यह है कि अहीरवाल के नेताओं ने कभी भी दृढ इच्छा शक्ति का परिचय नहीं दिया व अहीरवाल के नेताओं की आपसी फूट जग ज़ाहिर है। वर्तमान में हरियाणा विधानसभा में कुछ चुनिन्दा अहीर विधायकों में से 2 राज्य कबिनेट में मंत्री हैं व 2 संसदीय सचिव हैं। अभी कुछ दिन पहले अहीरवाल के 2 दबंग नेताओं ने दक्षिण हरियाणा के साथ हो रहे भेदभाव के खिलाफ आवाज़ उठाई तो अहीरवाल के बाकी नेताओं को उन्ही के खिलाफ खड़ा कर दिया गया।
लेकिन अब शायद अहीरवाल के विकास की राह दिखाई देती है। हाल ही में गुडगाँव से सांसद राव इंद्रजीत सिंह यादव ने हरियाणा के पटौदी में "इन्साफ रैली" कर हरियाणा के नीति नियंताओं को यह जता दिया है कि अब मनमानी नहीं चलेगी, रैली की अपार सफलता से अहीरवाल के लोगों ने भी जता दिया की वे अब विकास के मुद्दे पर एकजुट हैं फिर चाहे अहीरवाल के सभी नेता एक मंच पर आयें या फिर उन्हें यह लड़ाई केवल राव साहब के नेतृत्व में ही क्यों न लड़नी पड़े। 

मेरी राय में अहीरवाल समस्या के कुछ हल हैं:-
1. हरियाणा की बागडोर अब अहीरवाल के हाथों में सौंपी जाए ताकि इस क्षेत्र का चहुंमुखी विकास हो सके परन्तु जाट बाहुल्य होने के कारण यह संभव नहीं दिखाई देता क्योंकि विपक्षी इनेलो इसी पक्षपात के लिये विख्यात है व जाटों की पार्टी के रूप में पहचाना जाता है और सत्ताधारी कांग्रेस इसके लिए संजीदा नहीं दिखाई देती।
2. एक प्रथक राज्य की मांग भी की जा सकती है जिसमे मुख्यत: दक्षिण हरियाणा के क्षेत्र आते हैं, ऐसा करने से वहाँ पश्चिम बंगाल के दार्जीलिंग की तर्ज़ पर एक अलग विकास परिषद् बनाया जा सकता है जिससे इस क्षेत्र का विकास सुनिश्चित हो पायेगा।
३. अहीरवाल फिर से विशाल हरियाणा पार्टी की राह पर निकल पड़े। 90 सीटों वाली हरियाणा विधानसभा में 15 सीटों की भूमिका बहुत अहम साबित होगी व वक़्त आने पर यह प्रथक पार्टी सत्ताधारी हो सकती है।

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